“सुबह की डायरी”-बचपन, सुबह, शून्यता और जिज्ञासा
AC के कवर और नीचे नामदेव भाई के झूले के शेड पर बरसती बूँदों की टिप-टिप, हवा से खिड़की के पास आम के पेड़ के पत्तों की सरसराहट… के बीच 4:20 पर नींद खुली। जागकर बिस्तर पर बैठा हूँ — दोनों कोहनियाँ घुटनों पर टिकी हुईं हैं और ठुड्डी दोनों हथेलियों पर। कोई विचार मन में उलझा-अटका सा था।
ख़ैर, उठता हूँ। पाँव की उंगलियाँ, उनके जोड़ और एड़ी क्रमशः फर्श को छू चुके हैं।बाहर आज हवा और बारिश की सरसराहट के अलावा कोई स्वर नहीं है।
कुछ देर तक ध्यान-प्रेरित शून्यता की पूर्णतः असफल कोशिश की। फिर एक बात याद आई — कल अपने पुराने मित्र की साढ़े तीन माह की बच्ची “श्रीजा” को वीडियो कॉल पर देख रहा था।वह हिलते हुए परदे को देखकर खुश हो रही थी, मित्र की उंगली को चबाकर और चूसकर भी देख रही थी।
सोच पाया कि बच्चे curious, observant और aware तो होते हैं — पर informed नहीं।लेकिन हमारे सन्दर्भ में “informed होने का preconceived notion” ही हमारी जिज्ञासा और जागरूकता को कम कर देता है।
सोचते-सोचते 5:30 बज चुके हैं।अब हवा और बारिश थम चुकी है, और सारे पक्षी — कौवा, कोयल, बुलबुल,महोख ( Greater coucal) , झींगुर — सब मिलकर कोरस गान कर रहे हैं।तभी मित्र की बात याद आती है — “एक घंटे के लिए हम सब को बच्चा बन जाना चाहिए ।”
मैंने यही पहला घंटा चुना है इस कोशिश के लिए ,
अब चुकी बच्चा बनना है वो भी जीवन के वसंत देखने के बाद, सो टेबल लैम्प ऑन करने से पहले हाथों से टटोल कर देखा, बल्ब को चेक किया — बल्ब पर लिखा है:(2.5W, 0.03A, 50Hz, 220-230 V, B22d, 3000K, 225 LM).
स्विच ऑन करते ही महसूस किया कि किसी धातु की पट्टी से मैंने सर्किट पूरा कर दिया।और उसी क्षण, potential के प्रभाव में प्रति सेकंड लगभग 1.87×10^ 17 इलेक्ट्रॉन्स (N = I/e) दौड़ पड़े होंगे —
N-टाइप डायोड से P-टाइप के होल्स भरने के लिए। हर छलाँग में इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा खो रहा होगा और लगभग 590 nm की फोटॉन तरंगें उत्पन्न करता होगा, जिन्हें मैं बल्ब की पीली रोशनी के रूप में देख पा रहा हूँ।
बल्ब के भीतर एक ब्रिज-टाइप डायोड सर्किट भी होगा , जो AC को DC में बदलकर यह सब संभव कर रहा है। यही सब भूल चूका था मैं और इसपर ध्यान देने की तो अब जरूरत भी महसूस नहीं होती। मैंने इंटरनेट से, चेक किया तब याद आ गया कि e = 1.602176634 × 10⁻¹⁹ C.
अब 6:15 बज चुके हैं। मुर्गे की बांग हो चुकी है, पंछियों का कोरस थम गया है।कुछ तोतों की आवाज़ सुनाई दे रही है।
दरवाज़े के सामने बिजली के तार पर एक किंगफ़िशर और एक कौआ बैठे हैं ।
सोचता हूँ — मेरे लैपटॉप का बटन दबाने से उसके बूट होने तक कितनी परतों से होकर क्या-क्या घटित होता होगा? मेरी उंगलियों से कैसे वही अक्षर स्क्रीन पर उतर आते हैं — सच कहूँ तो मुझे नहीं मालूम; और तब कल्पना करता हूँ — बच्चों के मन में कितने-कितने सवाल आते होंगे!
बच्चा बनने की कोशिश करते हुए अनुभव कर रहा हूँ कि बच्चा होना भी कितना कठिन है एक बार बड़े होने के बाद।
सोचते-सोचते दिमाग और उंगलियों में हल्की थकान है, और चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई है…
21 -08 -2025
सुबह सबेरे अपने आस पास की प्रकृति का बहुत ही सुंदर अवलोकन... सहज, सुंदर अनुभूतियों से सजे ब्लॉग हेतु हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं।💐💐💐
ReplyDeleteDhanyawad sir ji
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