काग़ज़ की धरती,और स्याही की नाव।

मन का एक पाल,
कलम की पतवार;
जीवन के सागर में,
काग़ज़ की धरती,
और स्याही की नाव।

कभी मिली धूप,
कहीं मिली छाँव;
चलता रहा नाविक—
बिना कोई बस्ती,
बिना कोई गाँव।

चलते गए तब तक,
जब तक चले पाँव;
कभी मिली धूप,
कहीं मिली छाँव।

काग़ज़ की धरती,
और स्याही की नाव।

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