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"जीवन का उद्देश्य या जीवन ही उद्देश्य "

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क्यूँ  ज्ञातव्य है ,कि जीवन में हमारा उद्देश्य क्या हो ? न जाने , सतत संघर्षरत ,इस ज़िंदगी का पक्ष क्या हो ?  संभव है; राह, जो अनिश्चित और अगम हैं   जान पड़ती ,  किसी मंज़िल की राह हो, जहां हमें  ज़िंदगी हो  खींचती सी |  पीड़ाएं  भी  हैं  होतीं, अर्थपूर्ण और तर्कसंगत , जीने की इसी  कला को ,सब हैं त्याग कहते ; न जाने, सब  नियति का कोई खेल  भर हो , और  वृथा ही हम  लोग इतना सोचते हों    |  परिस्थति के भँवर से ,जीवन हमें ही,  निरंतर पूछता है , निमित कर्म और चरित्र की स्याही से हमें साकारता है |  मुमकिन  है, जीवन में सभी के,असंख्य चुनौतियां हों ; उज्व्वल कोई अवसर ,इन्हीं में,  हमको  को  ढूंढना है |  विपदा में  अवसर  का हुनर, जो हम सब प्राप्त कर लें ; क्यूँ  सोचना वृथा फिर, कि  हमारा उद्देश्य क्या हो ? व्यक्ति और  समय विशेष पर भी, है बहुत कुछ  निर्भर  ; क्यूँ सोचना फिर कि  जीवन  का  ध्रुव  लक्ष्य क्या  हो |  विपदा के हथौड़े ,  जब हों  हम पर चोट करते ; न जाने  कोई  देवता इस विधि हों , वो ताराशते ?  चाहिए निज  कर्त्तव्य से, कभी ना  डिगें हम ; बढ़ें  इन साधनों  से,  खुद को तराशते हम  |  कभी चाहिए बस 

पुस्तक समीक्षा राग दरबारी -श्रीलाल शुक्ल

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ज़िन्दगी की जद्दोजहद

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आदमी हो  के  पाल  रखी  हैं, अजीब जद्दोज़हद ;  डिग्री ,नौकरी, आरज़ू , गुरुर, इज्जत-शोहरत  |    जाने क्या-क्या  और कितनी फिजूल जरूरत |  कब,कैसे, ना जानें,  जरूरतों का यूँ बदलना भी ;   हो गया ,  इस मुंतशिर ज़िन्दगी की एक ज़रुरत  |  हमें तो तलाश थी अक़ीदत-ए -मोहब्बत की ; गोया बांटे जाते हैं बे-ऐतबारी -ओ  -अदावत  |  यूँ   तो चाहिए था सुकून-ओ -फुर्सत -ए - इत्मीनान ; के सब ख़रीद लातें हैं ज़माने से फ़िज़ूल   इज़्तिराब   | मालिक़ दे सबको  तौफ़ीक़ -ए -मुंतख़ब -ओ - मुस्तक़ीम; यूँ तो ज़िंदगी भी बहोत कुछ सीखाती है ब-सूरत-ए -तज़र्बात  |  मुंतशिर- - disorderly, divulged, diffused, scattered- बिखरी हुई अक़ीदत - Faith, Affection, Alliance, Attachment-श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा, भरोसा आस्था, एतिकाद, भरोसा, एतबार, निष्ठा।। बे-ऐतबारी -ओ    -अदावत-  unfaithfulness and  hatred-अविश्वाश और नफरत  इज़्तिराब-  - restlessness-व्याकुलता, बेचैनी, बेताबी, आतुरता, जल्दी, जल्दबाज़ी, व्यग्रता, तौफ़ीक़- ए -मुंतख़ब -ओ - मुस्तक़ीम -  blessed with the wisdom to select or choose right and simple way. तौफ़ीक़-blessing-  वरदान  मुंतख़

फिर दरीचे के पास एक दिल दिखा है

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                       फिर दरीचे के पास एक दिल दिखा है ,                          फिर से महक उठी  सारी फिजा है |                          आते जाते रस्ते सारे गुनगुनाने लगे हैं,                    दिल  भी  कोई नई धुन  बनाने  लगा है |                                                              फिर  हवा  दरख्तों को सहलाने लगी  है,                            खामोशियाँ  भी गुनगुनाने   लगी हैं |                     फिर से हो रहा  मुझको कोई  गुमां है  ,                   बिन पिए  ही हो गया मुझको  नशा है |                          बिन धुंए के आग एक  जल रही है,               खवाबों में जैसे किसी ने मुझको   छुआ है |                     जाने किस  मंजिल को ये  दिल चला है,                            ख़त्म न हो कभी  ये, वो रास्ता है |                          हैं लोग अब लेते हम से  मश्विरा हैं ,                          आता कहाँ से मुझमें     ये हौसला है |                    कैसे बता दें   ये राजे-दिल हम उनको,                    कि  ये दिल कैसे तेरा बिस्मिल  हुआ है|

Opportunity in the face of adversity

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पुस्तक समीक्षा गुनाहों का देवता

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प्राचीन सनातन भारतीय दर्शन और इसकी प्रासंगिकता

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सच कहूं तो वेदांत या भारतीय दर्शन पर कुछ बोलने या लिखने के लिए मैं अपने  आप को बड़ा अनुभवहीन और छोटा पाता हूँ, मगर जो कुछ भी थोडा बहुत समझ पाया हूँ , उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि दर्शन का शाब्दिक अर्थ देखना या खोजना है| प्राचीन भारतीय ज्ञान या दर्शन  स्वयं और ब्रह्म की खोज और उसके अंतर्संबंध के बोध का साधन है | बात अगर स्वयं के दर्शन की हो तो वेद ,पुराण ,उपनिषद एक दर्पण हैं और जो भी हम इसमें देखेंगे वह सापेक्ष होगा और चूँकि हर व्यक्ति अलग है तो उसका दर्शन भी अलग ही होगा| प्राचीन भारतीय ज्ञान या दर्शन की सभी व्याख्याएं तर्कसंगत, सापेक्ष और एक दुसरे से एकदम पृथक हो सकती हैं लेकिन इसकी एक सार्वभौमिक और पूर्ण व्याख्या नहीं हो सकती| सार्वभौमिक से यहाँ तात्पर्य ऐसी व्याख्या से है जो सबके लिए एक हो और स्थिर हो । वेदांत दर्शन में जड़ता के लिए कोई जगह नहीं है। यह तो बड़ी ही गतिशील ( dynamic) और प्रगतिशील (progressive) विषयवस्तु है | इसी को ऋग्वेद में " एकं सद् विप्रा बहुधा  वदन्ति  " (1.164.46)  इसका शाब्दिक अर्थ है "सत्य एक है, ज्ञानी इसे अलग तरह से अनुभव