"स्वतंत्रता मुक्ति से बहुत दूर"।
आगे बढ़ने से पहले एक विनम्र अनुस्मारक।
जो कुछ आगे है, वह आपकी मान्यताओं को चुनौती दे सकता है,
आपकी स्थापित धारणाओं को झकझोर सकता है,
और आपको आपके आरामदायक स्थिति से बाहर खींच सकता है।
मेरे प्रिय मित्र !
स्वतंत्रता ; तुम्हारी मुक्ति से बहुत दूर है।
ये दोनों ही बिलकुल अलग बातें हैं.
हम इस संसार में चलते हैं बंधे हुए—
लोहे की जंजीरों से नहीं,
बल्कि अदृश्य रस्सियों से,
जो हमारी असुरक्षाओं, भय, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से बनी हैं।
ये शक्तियाँ हमें लगातार चलाती रहती हैं,
फिर भी पहिये पर हाथ अदृश्य रहता है—
कोई उसे ईश्वर कहता है,
कोई ब्रह्मांड,
और कुछ, विकास।
शायद जिसे हम “स्वयं” कहते हैं,
वह केवल भ्रांत धारणाओं से अधिक कुछ नहीं।
मुझे सत्य का ज्ञान नहीं।
मैं केवल इतना जानता हूँ—
हम न तो अपनी मान्यताएँ हैं,
न अपने विचार,
न अपनी धारणाएँ,
और न ही अपनी भावनाएँ।
एक मुक्त आत्मा दुर्लभ है—
कस्तूरी की गंध सा ,
विचारों में सब जानते हैं;
व्यव्हार में शायद ही कोई ;
हवा में एक तरंग-वल्लिका-सी,
सभी के कानों तक तो आती है,
पर हृदय तक शायद ही कोई ले जा पाता है।
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