दिवास्वप्न : एक जीवन संवाद !
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और गजानंद माधव मुक्तबोध , हिंदी साहित्य में आधुनिक कविता के अग्रदूत माने जाते हैं। आज मुझे मुक्तिबोध जी की एक पंक्ति याद आ रही है वो लिखते हैं। " जो आदमी आत्मा की आवाज कभी कभी सुन लिया करता है और उसे लिख कर छुट्टी पा लेता है लेखक हो जाता है। “ मुक्तिबोध जी के लेखक परिचय को मानूँ तो , मेरा परिचय बस इतना है कि , मैं अभय कुमार , हिंदी साहित्य का एक साधारण रचनाकार हूँ , और निरंतर अपनी रचनाओं के माध्यम से , प्रासंगिक बने रहने की कोशिश कर रहा हूँ। इसी श्रृंखला में उत्तराखंड से ही हिंदी भाषा के सिद्ध हस्त लेखक शैलेश मटियानी जी लिखते हैं कि लेखक की शोभा इसी में है कि वह विचार किए जाने की स्थितियां संभव करे और उनपर विचार किया जाए। आज की मेरी कविता का नायक हम सभी के भीतर बसे एक कर्मयोगी और प्रकृति प्रेमी का प्रतिबिंब है। वह यह विश्वास रखता है कि हमारा जीवन केवल खुद तक सीमित और पूरी तरह व्यक्तिगत मायनों में शायद ही कोई विशेष अर्थ रखता हो। इसके विपरीत , हमारा जीवन तब सार्थक होता ह...