शिव चरण वंदना

 


शिव चरण वंदना समर्पित भक्ति-भावना से आप्लावित एक  श्लोक-संग्रह है जिसमें भगवान महादेव (शिव) के चरणों के दर्शन को परम अभीष्ट (सर्वोच्च कामना) बताया गया है। हर श्लोक में भक्त भावविभोर होकर कहते हैं कि उन्होंने जो शिव के चरणों के दर्शन किए हैं, उसके बाद और क्या अभीष्ट शेष रह गया है?

नीचे प्रत्येक श्लोक का संन्धिविच्छेद (Sandhi-Viccheda) और सरल अर्थ (Meaning) आप सबों के लिए परम आराध्य शिव के चरणों में समर्पित है। 

श्लोक १

यद्विष्णुनेत्रभ्रमरालीढं ते पदपङ्कजम् ।
मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥१॥

संधिविच्छेद:


यत् + विष्णु + नेत्र + भ्रमर + आलिढ़म् = यद्विष्णुनेत्रभ्रमरालीढम्
ते + पद + पङ्कजम् = ते पदपङ्कजम्
किम् + अभीष्टम् + अतः + परम् = किमभीष्टमतः परम्

भावार्थ 
हे महादेव! आपके उन चरणकमलों  का मैंने दर्शन किया है जिसे विष्णु के नेत्र रूपी भ्रमरों ने चूमा है। अब इससे बढ़कर मैं और क्या चाहूँ ?

श्लोक २- 

यत्सिद्धहृत्पङ्कजगं तव पादाब्जमुत्तमम् ।

मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥२॥

संधिविच्छेद:

यत् + सिद्ध + हृत् + पङ्कज + गम् = यत्सिद्धहृत्पङ्कजगम्

तव + पाद + अब्जम् + उत्तमम् = तव पादाब्जमुत्तमम्

भावार्थ 

हे महादेव! वह पवित्र चरणकमल जो सिद्धजनों के हृदयकमलों  में स्थित होते हैं  , उनके मुझे दर्शन हुए ।  अब और क्या इच्छा रह गई?


श्लोक ३ -

यद्ध्यातं योगिवर्यस्ते पादमद्ममभीष्टदम् ।

मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥३॥

संधिविच्छेद:

यत् + ध्यान्तं = यद्ध्यातम्

योगि + वर्यः + ते + पाद + अब्जम् + अभीष्टदम् = योगिवर्यस्ते पादमद्ममभीष्टदम्

भावार्थ :

हे महादेव! वह चरणकमल जिसका ध्यान श्रेष्ठ योगी करते हैं और जो उन्हें अभीष्ट फल देते हैं , उनके मैंने दर्शन किया। अब और क्या चाहूँ?

श्लोक ४ 

विष्णुनेत्रार्चितं यत्ते पदद्वन्द्वमनुत्तमम् ।

मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥४॥

संधिविच्छेद:

विष्णु + नेत्र + अर्चितम् = विष्णुनेत्रार्चितम्

ते + पद + द्वन्द्वम् + अनुत्तमम् = ते पदद्वन्द्वमनुत्तमम्

भावार्थ :

हे महादेव! आपके उन श्रेष्ठ चरणों का मैंने दर्शन किया है जिन्हें भगवान विष्णु ने अपनी आंखों से पूजित किया है। अब मुझे  और क्या चाहिए?


श्लोक ५-

यत्ते श्रुतिशिरोरत्नं चरणद्वन्द्वमुत्तमम् ।

मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥५॥

संधिविच्छेद:

यत् + ते + श्रुति + शिरस् + रत्नम् = यत्ते श्रुतिशिरोरत्नम्

चरण + द्वन्द्वम् + उत्तमम् = चरणद्वन्द्वमुत्तमम्

भावार्थ 

हे शिव! आपके चरणद्वय वेदों के मुकुटमणि हैं। मैंने उन चरणों का दर्शन किया। अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए।


श्लोक ६

संस्कृत:

यन्मौनिमानससरोहंसभूतं पदाम्बुजम् ।

मया दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥६॥


संधिविच्छेद:

यत् + मौनि + मानस + सरः + हंस + भूतं = यन्मौनिमानससरोहंसभूतम्

पद + अम्बुजम् = पदाम्बुजम्


भावार्थ 

हे शिव! आपके चरणकमल वह है जो मुनियों के मनरूपी सरोवर का हंस बन गया है। मैंने उसका दर्शन किया। इससे ऊपर और क्या चाहिए?


श्लोक ७

संस्कृत:

यदनायासेन मोक्षाय कल्पते पदपङ्कजम् ।

तत्ते दृष्टं महादेव किमभीष्टमतः परम् ॥७॥


संधिविच्छेद:

यत् + अनायासेन + मोक्षाय + कल्पते = यदनायासेन मोक्षाय कल्पते

पद + पङ्कजम् = पदपङ्कजम्

तत् + ते = तत्ते


भावार्थ 

हे महादेव! आपके चरणकमल का दर्शन सहज ही मोक्ष का साधन बनता है। अब और क्या अभीष्ट रह गया?


श्लोक ८

संस्कृत:

पूर्णा मनोरथाः सर्वे यण्पदद्वन्द्वन्दर्शनात् ।

तत्ते दृष्टं महादेवं किम्मभीष्टमतः परम् ॥८॥


संधिविच्छेद:

पूर्णाः + मनोरथाः + सर्वे = पूर्णा मनोरथाः सर्वे

यत् + पद + द्वन्द्व + दर्शनात् = यण्पदद्वन्द्वन्दर्शनात्

तत् + ते = तत्ते

किम् + अभीष्टम् + अतः + परम् = किम्मभीष्टमतः परम्


भावार्थ 

हे महादेव! आपके चरणों के दर्शन से सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। मैंने वह सौभाग्य पाया, फिर अब और क्या अभिलाषा बची है?


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