साक्षात्कार



मेरी लेखनी में,
ईश्वर नहीं दिखता,
मगर होता है,
शब्दों में पिरोया,
अनासक्ति में भिगोया।

इसमें मिल सकता है,
जीवन सरिता का विस्तार, 
कर्म की नौका पर सवार,
जीवन के तिलिस्म की,
भव्यता का स्वीकार 
और, एक गूढतम अंगीकार।

उसकी प्रथम अनुभूति का,
अनुपम साक्षात्कार।
मूर्तियां नहीं है मगर,
जीव और जीवन में जीवंत,
वह मिलेगा अध्योपांत।

दिख सकता है,
परंपरा से विद्रोह,
एक उन्मुक्त अंतर्बोध,
बंधनों से विरोध ,
और सहज,निर्मल, उत्कंठ अभिलाषा,
एक, निर्बंध अनुभूति की .......


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