ईश्वर के मन का - "एक आत्मीय संवाद ईश्वर से"

ईश्वर को याद सभी करते हैं,
कोई चाहता नहीं कि
ईश्वर भी कभी उसे याद कर ले।

भगवान से प्यार सभी करते हैं,
कोई चाहता नहीं
भगवान का प्यारा होना।

सभी मांगते हैं ईश्वर से अपने मन का,
अर्पण भी करते हैं कुछ अपने ही मन का।
कोई मांगता नहीं ईश्वर से
खुद के लिए ईश्वर के मन का।

कोई भगवान से कभी नहीं पूछता,
कि उसको भी कुछ चाहिए क्या?
कुछ तो चाहता ही होगा ईश्वर हमसे,
उस सर्वसमर्थ का कोई प्रयोजन तो होगा।

हम ईश्वर की ही तो रचना हैं,
ईश्वर का उद्देश्यहीन कृत्य
या एक ईश्वरीय दुर्घटना मात्र
तो नहीं हो सकते।

यूं तो जानते हैं,हम ईश्वरीय रचनाएं होते हैं।
दुर्घटनाएं, ईश्वरीय कृत्य नहीं हो सकतीं।

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