"जीवन का उद्देश्य या जीवन ही उद्देश्य "




















क्यूँ  ज्ञातव्य है ,कि जीवन में हमारा उद्देश्य क्या हो ?

न जाने , सतत संघर्षरत ,इस ज़िंदगी का पक्ष क्या हो ? 

संभव है; राह, जो अनिश्चित और अगम हैं   जान पड़ती , 

किसी मंज़िल की राह हो, जहां हमें  ज़िंदगी हो  खींचती सी | 


पीड़ाएं  भी  हैं  होतीं, अर्थपूर्ण और तर्कसंगत ,

जीने की इसी  कला को ,सब हैं त्याग कहते ;

न जाने, सब  नियति का कोई खेल  भर हो ,

और  वृथा ही हम  लोग इतना सोचते हों    | 


परिस्थति के भँवर से ,जीवन हमें ही,  निरंतर पूछता है ,

निमित कर्म और चरित्र की स्याही से हमें साकारता है | 

मुमकिन  है, जीवन में सभी के,असंख्य चुनौतियां हों ;

उज्व्वल कोई अवसर ,इन्हीं में,  हमको  को  ढूंढना है | 


विपदा में  अवसर  का हुनर, जो हम सब प्राप्त कर लें ;

क्यूँ  सोचना वृथा फिर, कि  हमारा उद्देश्य क्या हो ?

व्यक्ति और  समय विशेष पर भी, है बहुत कुछ  निर्भर  ;

क्यूँ सोचना फिर कि  जीवन  का ध्रुव  लक्ष्य क्या  हो | 


विपदा के हथौड़े ,  जब हों  हम पर चोट करते ;

न जाने  कोई  देवता इस विधि हों , वो ताराशते ?

 चाहिए निज  कर्त्तव्य से, कभी ना  डिगें हम ;

बढ़ें  इन साधनों  से,  खुद को तराशते हम  | 


कभी चाहिए बस वर्तमान को स्वीकार लें हम  ,

संघर्ष भी तो,  अनुभव अमूल्य  हमें देते जाते ;

भले जीवन से , हम  कुछ ना चाहतें हों 

संभव है  जीवन ही ,  हमसे  कुछ  चाहता हो  ?


क्षण  नहीं  जीवन में, जब कोई लक्ष्य   ना  हो ;

बस हुनर चाहिए, कि हम  उसे देख पाएं | 

हुनर जो  पा गए, तो क्यों  सोचना फिर ,

कि जीवन में ,हमारा उद्देश्य क्या हो ?





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