फिर दरीचे के पास एक दिल दिखा है
फिर दरीचे के पास एक दिल दिखा है , |
फिर से महक उठी सारी फिजा है |
आते जाते रस्ते सारे गुनगुनाने लगे हैं,
दिल भी कोई नई धुन बनाने लगा है |
फिर हवा दरख्तों को सहलाने लगी है,
खामोशियाँ भी गुनगुनाने लगी हैं |
फिर से हो रहा मुझको कोई गुमां है ,
बिन पिए ही हो गया मुझको नशा है |
बिन धुंए के आग एक जल रही है,
खवाबों में जैसे किसी ने मुझको छुआ है |
जाने किस मंजिल को ये दिल चला है,
ख़त्म न हो कभी ये, वो रास्ता है |
हैं लोग अब लेते हम से मश्विरा हैं ,
आता कहाँ से मुझमें ये हौसला है |
कैसे बता दें ये राजे-दिल हम उनको,
कि ये दिल कैसे तेरा बिस्मिल हुआ है|
आज फिर हवाओं ने दरख्तों को छुआ है,
फिर दरीचे के पास एक दिल दिखा है|
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