"मैं जो हूँ मुझे वही रहना चाहिए" भवानी प्रसाद मिश्र
"मैं जो हूँ मुझे वही रहना चाहिए"
मैं जो हूँ; मुझे वही रहना चाहिए
यानी;वन का वृक्ष,खेत की मेंड़;
नदी कि लहर ,दूर का गीत l
व्यतीत वर्तमान में ,उपस्थितभविष्य में ,
मैं जो हूँ, मुझे वही रहना चाहिए
तेज गर्मी, मूसलाधार बारिश,
कड़ाके की सर्दी, खून की लाली
डूब का हरापन ,फूल की ज़र्दी l
मैं जो हूँ ; मुझे वही रहना चाहिए
मुझे अपना होना, ठीक-ठाक सहना चाहिए
तपना चाहिए, अगर लोहा हूँ,
तो हल बनने के लिए;
बीज हूँ, तो गड़ना चाहिए;
फल बनने के लिए
मैं जो हूँ, मुझे वही बनने चाहिए
धारा हूँ अन्तःसलिला,तो मुझे कुएं के रूप में
खनना चाहिए, ठीक ज़रूरतमंद हाथों में
गान फैलाना चाहिए मुझे, अगर मैं आसमान हूँ
मगर मैं,कब से ऐसा नहींकर रहा हूँ,
जो हूँ, वही होने से डर रहा हूँ।
भवानीप्रसाद मिश्र
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