मृगतृष्णा
एक ठेस लगी, कोई टीस जगी,
कुछ स्वप्न टूटे, एक मोह छूटा ।
प्रछन्न अंतस के आनन पर,
मृगतृष्णा से,कुछ स्वप्न जगे।
फिर मोह हुआ,एक जोग लगा,
एक होड़ लगी, एक दौड़ हुई,
वो भी सब के, संग दौड़ पड़ा ।
आनंद था, सफलता मे,
या आनंद ही सफलता थी ?
ना ये सब कुछ सोच सका,
उस जल्दी मे, बस दौड़ गया ।
सब पाने-करने की चाहत में,
जाने कितना कुछ छुट रहा,
कुछ सपनों को बुनने में,
जाने कितना कुछ टूट गया ?
घर का आंगन ,आँगन की तुलसी,
छप्पर की गौरैया,गौशाले की गाय,
सब काफी पहले ही छूट गए।
कभी ठहरें तो ,ये सोचेंगे कि,
क्या खोया क्या पाया है ?
सब था यथार्थ या बस माया थी?
बहुत खूब सर!!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद 😊
Delete