"जीवन का उद्देश्य या जीवन ही उद्देश्य "
क्यूँ ज्ञातव्य है ,कि जीवन में हमारा उद्देश्य क्या हो ? न जाने , सतत संघर्षरत ,इस ज़िंदगी का पक्ष क्या हो ? संभव है; राह, जो अनिश्चित और अगम हैं जान पड़ती , किसी मंज़िल की राह हो, जहां हमें ज़िंदगी हो खींचती सी | पीड़ाएं भी हैं होतीं, अर्थपूर्ण और तर्कसंगत , जीने की इसी कला को ,सब हैं त्याग कहते ; न जाने, सब नियति का कोई खेल भर हो , और वृथा ही हम लोग इतना सोचते हों | परिस्थति के भँवर से ,जीवन हमें ही, निरंतर पूछता है , निमित कर्म और चरित्र की स्याही से हमें साकारता है | मुमकिन है, जीवन में सभी के,असंख्य चुनौतियां हों ; उज्व्वल कोई अवसर ,इन्हीं में, हमको को ढूंढना है | विपदा में अवसर का हुनर, जो हम सब प्राप्त कर लें ; क्यूँ सोचना वृथा फिर, कि हमारा उद्देश्य क्या हो ? व्यक्ति और समय विशेष पर भी, है बहुत कुछ निर्भर ; क्यूँ सोचना फिर कि जीवन का ध्र...