जीवन की भंगुरता
एक सुन्दर सपना ;
और मानव जीवन
ईश्वर की सुन्दरतम रचना !
किन्तु सपनो की सुन्दरता
में मत खोना ;
चाहे ये कितने प्यारे हो
वो फिर भी भंगुर होते हों !
पल जो हम जी लेते हैं
वो लौट कहाँ फिर पाते हैं
भूली- बिसरी यादों में ही
वो बस रह जाते हैं
तो क्यों हम,
इस भंगुरता का जश्न मनाते हैं ?
अपने खोये बसंत पर नाचते गाते हैं ?
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