अंतर्द्वंद्व

केवल लिखने के लिए ,
लिखना चाहता हूँ।
और बस जीवन के लिए,
जीना चाहता हूं।
कहानियां नहीं हैं मेरे पास,
किन्तु कुछ सार्वभौम,
रचना चाहता हूँ।
कोई निश्चित गंतव्य नहीं है,
मगर सब तक पहुंचना चाहता हूँ।
अपने व्यक्ति को उसकी सम्भाव्य,
समष्टि से मिलाना चाहता हूँ।
दीपक या दिनकर नहीं हूँ, 
लेकिन हैं, कुछ तीलियां मेरे पास।
अपने अंधेरे को पार कर ,
सबके मन के दीयों की ओर,
एक लौ बढ़ाना चाहता हूँ।
कोई निश्चित सवाल नहीं है ,
बस कुछ लाजवाब ,लिखना चाहता हूँ।
कोई मिसाल नहीं हूँ,
बस कुछ बेमिसाल, लिखना चाहता हूँ।
वसुधा के गर्भ से जैसे,
अंगारों को हिम का आवरण तोड़,
ज्वालामुखी बन,निकलना पड़ता है।
अंतस में विचारों की ज्वाला सी है,
न लिखूं ,तो बेचैनी सी होती है,
और लिखूं तो विद्रोह होता है।
उगाने में कागज़ पर, एक फूल गुलाब सा,
कांटे भी उग आते हैं, सहज ही।
संभव है, सब तक न पहुंचे,
मेरे मन की सीपियों से,
अंतर्द्वंद्व के ये मोती,
मगर निरन्तर गढ़ रहा हूँ,
मैं, कुछ टेढ़े - चिपटे मोती,
की जब कोई ढूंढता आए ,
मेरे अंतर्द्वंद्वों में गढ़े मोतियों सा कुछ,
तो कुछ मिल जाए उसे उसके मतलब का।
जीवन सागर में, 
विचारों के झंझावातों के बीच,
जब किनारे नहीं दिखते , 
तो सागर के हृदय पर ,
अपने कर्म की पतवार से ,
कुछ सृजते हुए , थोड़ा आगे,
बढ़ जाना चाहता हूं।
केवल लिखने के लिए ,
लिखना चाहता हूँ।
और बस जीवन के लिए,
जीना चाहता हूं।
https://youtube.com/shorts/TgrnjtyaneA?feature=shared


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