लम्बे अरसे तक कुछ सवालों के जबाब न ढूंढें जाएँ तो वो प्रश्न और उससे जुड़े विचार आपका अंतर्द्वंद बन जाती हैं। ईश्वर और धर्म के नाम पे न जाने कितने झगडे हुए, हो रहे हैं और निकट भविष्य में ख़त्म होते नहीं प्रतीत होते। जो धर्म जगत कल्याण का सार्वभौमिक समाधान होने चाहिए थे वो कब धर्म रहे ही नहीं वरन एक सम्प्रदाय* मात्र बन कर रह गये। मेरे लिए यह एक गंभीर प्रश्न है। हाँ विभिन्न मतावलम्बियों में ईश्वर की श्रेष्ठ्ता का प्रश्न जो मैंने यहाँ शीर्षक में चुना है वह केवल सांकेतिक है। अब हम ईश्वर की अवधारणा को की विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। इस्लाम (कुरान और हदीस ) - Islamic Beleif "Quran " chapter 112:(1to 4) - Al-Ikhlas قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ -Say: “Allah is Ahad (One) .” (Allah is the infinite, limitless and indivisible, non-dual ONENESS.) قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ - “Allah is Samad .” - the Sustainer ˹needed by all- The term "Samad" is not easy to translate into English with a si...
सच कहूं तो वेदांत या भारतीय दर्शन पर कुछ बोलने या लिखने के लिए मैं अपने आप को बड़ा अनुभवहीन और छोटा पाता हूँ, मगर जो कुछ भी थोडा बहुत समझ पाया हूँ , उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि दर्शन का शाब्दिक अर्थ देखना या खोजना है| प्राचीन भारतीय ज्ञान या दर्शन स्वयं और ब्रह्म की खोज और उसके अंतर्संबंध के बोध का साधन है | बात अगर स्वयं के दर्शन की हो तो वेद ,पुराण ,उपनिषद एक दर्पण हैं और जो भी हम इसमें देखेंगे वह सापेक्ष होगा और चूँकि हर व्यक्ति अलग है तो उसका दर्शन भी अलग ही होगा| प्राचीन भारतीय ज्ञान या दर्शन की सभी व्याख्याएं तर्कसंगत, सापेक्ष और एक दुसरे से एकदम पृथक हो सकती हैं लेकिन इसकी एक सार्वभौमिक और पूर्ण व्याख्या नहीं हो सकती| सार्वभौमिक से यहाँ तात्पर्य ऐसी व्याख्या से है जो सबके लिए एक हो और स्थिर हो । वेदांत दर्शन में जड़ता के लिए कोई जगह नहीं है। यह तो बड़ी ही गतिशील ( dynamic) और प्रगतिशील (progressive) विषयवस्तु है | इसी को ऋग्वेद में " एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति " (1.164.46) इसका शाब्दिक अर्थ है "सत्य एक है, ज्ञानी इसे अलग तरह ...
एक दिन एक बंद कारखाने में कहीं से एक सांप घुस आया . वहाँ अंधेरा था. अंधेरे में सांप किसी चीज़ से टकरा गया और थोड़ा ज़ख़्मी हो गया. फिर क्या सांप पर गुस्सा चढ़ गया और उसने अपना फन उठा कर उस चीज़ को डसने का प्रयास किया, जिससे वह टकराया था. इस प्रयास में वह अपना मुख भी ज़ख्मी कर बैठा क्योंकि वह चीज़ कुछ और नहीं बल्कि आरी थी । गुस्से ने उसे जकड़ रखा था और उसका ख़ुद पर कोई काबू नहीं रह गया था. फिर वह आरी से कसकर लिपट गया और दबाव बनाकर उसका दम घोंटने के प्रयास में लग गया, आरी की तेज धार के उसका पूरा शरीर लहुलुहान हो गया। अंततोगत्वा क्रोध पर कोई नियंत्रण न होने के कारण सांप ने अपने प्राण गंवा दिये थे। क्रोध पर अपने लिखने की मेरी योग्यता बस इतनी है की मैंने क्रोध का अनुभव किया है और क्रोध से मैं हारा हूं कई बार और कुछ मौकों पर क्रोध का प्रबंधन भी कर पाया हूँ। ...
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