नारी
ये झुकती नजर,
ये लहराती जुल्फें,
ये हया की फितरत,
ये शर्माना तुम्हारा,
सब ठीक,
मगर तुम जरा,
इठलाना भी,
इतराना भी,
जमीं से जुड़ी रहना,
मगर ख्वाबों के पंखों
को बचाए रखना,
उड़ना, और जाना वहां तक,
जहां तक जाना चाहती हो, तुम।
सब के लिए, सब कुछ करते हुए,
खुद के लिए भी, कुछ - कुछ करती रहना।
मत भूलना कि तुम भी
तुम्हारी जिम्मेदारी हो,
तुम्हें भी तुम्हारी, उतनी ही,
या, उन सबसे ज्यादा जरूरत है।
तुम सृजन की जननी हो,
तुम ही परिवर्तन की ,
अक्षरा प्रेरणा हो।
अपने सपनों के,
गगनचुंबी प्रसादों को गढ़ती जाना।
उन्हें हौसलों की उड़ान देना।
जब लगे कि रिवाजों - दस्तूरों,
और जिम्मेदारियों की बेड़ियां ,
तुम्हें कस चुकीं हैं,
दौड़ना मुमकिन ना हो,
तब चलना,
हिलने की कोशिश करना,
मगर,रुकना मत ,
जब कुछ भी ,
सरल ना हो,तब भी,
तुम सहज रहना,
मत भूलना,तुम कौन हो?
तुम सृजन की जननी हो,
तुम ही परिवर्तन की प्रेरणा हो,
तुम धैर्य धारणी, वसुंधरा हो,
तुम आरंभ हो , तुम विस्तार भी,
तुम संकल्प हो,
तुम सृजन की धार भी,
तुम सनातन प्रवाहशील ,
जीवन सलिला हो,
तुम नारी हो।
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