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Showing posts from August, 2023

Anger: Mindful Observation, Evaluation, and Natural Management

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                        One day, a snake sneaked into a closed factory. It was dark inside. In the darkness, the snake collided with an object and got slightly injured. Then the snake became angry and tried to strike the object with its fangs, which it had collided with. In this attempt, the snake ended up injuring its own mouth as the object was not something else but a saw. Fueled by anger, the snake held onto the saw, losing all control over itself. It tightly coiled around the saw and created pressure, attempting to crush it. Due to the swift edge of the saw, the snake's entire body became covered in wounds. Ultimately, due to the lack of control over its anger, the snake lost its life. As far as my ability to write about anger is concerned, it's just that I have experienced anger and have been defeated by anger multiple times, but on some occasions, I have managed to control my anger as well. Anger! Although it...

क्रोध अवलोकन, मूल्यांकन एवं स्वाभाविक प्रबंधन

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                                           एक दिन  एक बंद कारखाने में  कहीं से एक सांप  घुस आया .  वहाँ अंधेरा था. अंधेरे में सांप किसी चीज़ से टकरा गया और थोड़ा ज़ख़्मी हो गया. फिर क्या सांप   पर गुस्सा चढ़ गया और उसने अपना फन उठा कर  उस चीज़ को डसने का प्रयास किया, जिससे वह टकराया था. इस प्रयास में वह अपना मुख भी ज़ख्मी कर बैठा क्योंकि वह चीज़ कुछ और नहीं बल्कि  आरी थी । गुस्से ने उसे जकड़ रखा था और उसका ख़ुद पर कोई काबू नहीं रह गया था. फिर  वह आरी से कसकर  लिपट गया और दबाव बनाकर उसका दम घोंटने के प्रयास में लग गया,  आरी की तेज धार के उसका पूरा शरीर लहुलुहान हो गया। अंततोगत्वा क्रोध पर कोई नियंत्रण न होने के कारण सांप ने अपने प्राण गंवा दिये थे। क्रोध पर अपने  लिखने  की मेरी योग्यता बस इतनी है की मैंने क्रोध का अनुभव किया है और क्रोध से मैं हारा हूं कई बार और कुछ मौकों पर क्रोध का प्रबंधन भी कर पाया हूँ। ...

एक कहानी छोटी सी।

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   सिय राम मय सब जग जानी,                                करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ॥ अर्थात - समस्त संसार  में  ईश्वर   का वास   है , सब में भगवान हैं और  हमें उनको   हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए। तुलसीदास जी जब   रामचरितमानस   लिख रहे थे , तो उन्होंने ये             चौपाई लिखी:चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने   घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला:   अरे महात्मा जी , इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप   इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये । तुलसीदास जी ने सोचा: ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है , सब में  ईश्वर का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा। लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी   बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी   और वो बु...