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जीवन चक्र

जीवन चक्र   कितना अद्भुत है।हर रोज उस लाल सूरज का निकल आना; पर्वत के पीछे से अरुणिमा लिए,और फिर छिप जाना दूर कहीं; क्षितिज के साये में लाल पड़के  ।।  कैसे  गंगा चल पड़ती है. बच्चे सी किलकारियां करते हुए  पर्वतों के बीच से,और मिल जाती है,दूर कहीं ख़ामोशी सेमंद- मंथर गति लिए एक वृद्धा सी, उस सागर  में।। कितना सुंदर है उस बाल चंद का होना. हर रोज थोड़ा बड़ा होना फिर व्यस्क पूर्ण चंद्र का होना और फिर प्रौढ़ होकर धीरे-धीरे शांति से वृद्ध की भांति अमावस्या का सफर तय करना, सब कितना सुंदर है।। यही तो जीवन चक्र भी है।।