Which God or Religion is real (question which has caused millions to die)
लम्बे अरसे तक कुछ सवालों के जबाब न ढूंढें जाएँ तो वो प्रश्न और उससे जुड़े विचार आपका अंतर्द्वंद बन जाती हैं। ईश्वर और धर्म के नाम पे न जाने कितने झगडे हुए, हो रहे हैं और निकट भविष्य में ख़त्म होते नहीं प्रतीत होते। जो धर्म जगत कल्याण का सार्वभौमिक समाधान होने चाहिए थे वो कब धर्म रहे ही नहीं वरन एक सम्प्रदाय* मात्र बन कर रह गये। मेरे लिए यह एक गंभीर प्रश्न है। हाँ विभिन्न मतावलम्बियों में ईश्वर की श्रेष्ठ्ता का प्रश्न जो मैंने यहाँ शीर्षक में चुना है वह केवल सांकेतिक है। अब हम ईश्वर की अवधारणा को की विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
इस्लाम (कुरान और हदीस ) - Islamic Beleif"Quran " chapter 112:(1to 4) - Al-Ikhlas
"Quran " chapter 112:(1to 4) - Al-Ikhlas
قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ -Say: “Allah is Ahad (One).” (Allah is the infinite, limitless and indivisible, non-dual ONENESS.)
قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ - “Allah is Samad.” -the Sustainer ˹needed by all-The term "Samad" is not easy to translate into English with a single word, but it conveys the idea that Allah is the Self-Sufficient, Eternal, and Independent One. Allah is not dependent on anyone or anything, and all of creation depends on Him for their sustenance and needs. He is the ultimate source of support and refuge for all.
لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ - “He begets not. (He has never had offspring, nor was He born.)- This verse rejects the notion of God having children or being born. In Islamic theology, Allah is above the concept of procreation or being born, as these are attributes of created beings and not applicable to the Creator.
وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ كُفُوًا أَحَدٌۢ - “There is none like unto Him!” (Nothing – no conception – in the micro or macro planes of existence is equivalent to or in resemblance of Him.)-This verse emphasizes that there is nothing and no one that is comparable or equal to Allah. He is beyond human comprehension and imagination, and nothing in the universe can be likened to Him. He is utterly unique and transcendent.
however ,Prophet Muhammad said, “Allah has ninety-nine names, i.e. one-hundred minus one, and whoever knows them will go to Paradise.”(Sahih Bukhari 50:894)
Abu Huraira reported Allah’s Messenger as saying: There are ninety-nine names of Allah; he who commits them to memory would get into Paradise. Verily, Allah is Odd (He is one, and it is an odd number) and He loves odd number..”सूरह अल-इखलास के ये पंक्तियाँ इस्लाम धर्म में प्रतिपादित एकेश्वरवाद के मूल सिद्धांतों को संक्षेप में प्रकट करती हैं, जिसमें अल्लाह की अद्वितीयता , आत्मनिर्भर , और अनुपम स्वरूप का उल्लेख किया गया है। मुस्लिम इस सूरह को अपनी नमाज़ों में बार-बार पढ़ते हैं जो उन्हें अपने धर्म के मौलिक सिद्धांत, तौहीद, यानी ईश्वर की एकता के विशेषता का अवगत कराते हैं।
हालांकि ईश्वर (अल्लाह) के 99 नाम हैं उनके अलग - अलग गुणों या स्वरुप के द्योतक हैं
قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ -Say: “Allah is Ahad (One).” (Allah is the infinite, limitless and indivisible, non-dual ONENESS.)
قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ - “Allah is Samad.” -the Sustainer ˹needed by all-The term "Samad" is not easy to translate into English with a single word, but it conveys the idea that Allah is the Self-Sufficient, Eternal, and Independent One. Allah is not dependent on anyone or anything, and all of creation depends on Him for their sustenance and needs. He is the ultimate source of support and refuge for all.
لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ - “He begets not. (He has never had offspring, nor was He born.)- This verse rejects the notion of God having children or being born. In Islamic theology, Allah is above the concept of procreation or being born, as these are attributes of created beings and not applicable to the Creator.
وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ كُفُوًا أَحَدٌۢ - “There is none like unto Him!” (Nothing – no conception – in the micro or macro planes of existence is equivalent to or in resemblance of Him.)-This verse emphasizes that there is nothing and no one that is comparable or equal to Allah. He is beyond human comprehension and imagination, and nothing in the universe can be likened to Him. He is utterly unique and transcendent.
however ,Prophet Muhammad said, “Allah has ninety-nine names, i.e. one-hundred minus one, and whoever knows them will go to Paradise.”(Sahih Bukhari 50:894)
Abu Huraira reported Allah’s Messenger as saying: There are ninety-nine names of Allah; he who commits them to memory would get into Paradise. Verily, Allah is Odd (He is one, and it is an odd number) and He loves odd number..”सूरह अल-इखलास के ये पंक्तियाँ इस्लाम धर्म में प्रतिपादित एकेश्वरवाद के मूल सिद्धांतों को संक्षेप में प्रकट करती हैं, जिसमें अल्लाह की अद्वितीयता , आत्मनिर्भर , और अनुपम स्वरूप का उल्लेख किया गया है। मुस्लिम इस सूरह को अपनी नमाज़ों में बार-बार पढ़ते हैं जो उन्हें अपने धर्म के मौलिक सिद्धांत, तौहीद, यानी ईश्वर की एकता के विशेषता का अवगत कराते हैं।
हालांकि ईश्वर (अल्लाह) के 99 नाम हैं उनके अलग - अलग गुणों या स्वरुप के द्योतक हैं
99 names of Allah – Meaning and Explanation
ईसाई धर्म ( Christian belief)
बाइबल को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है: पुराना नियम (Old Testament ) और नया नियम (New Testament)।
Old Testament में, ईश्वर को ब्रह्मांड के निर्माता, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ, अद्वितीय ,और अपरिवर्तनशील (सनातन)और दयावान रूप में चित्रित ,किया गया है। उसे एक न्यायपूर्ण और धर्मनिष्ठ स्वरूपी ईश्वर के रूप में दिखाया गया है।
Old Testament में ईश्वर की कुछ मुख्य गुण और विवरण शामिल हैं:
Yahweh (the LORD):Exodus 3:14 - "God said to Moses, 'I AM WHO I AM.' And he said, 'Say this to the people of Israel: 'I AM has sent me to you.''
Elohim: Genesis 1:1 - "In the beginning, God created the heavens and the earth."
Merciful and compassionate: Exodus 34:6 - "The LORD passed before him and proclaimed, 'The LORD, the LORD, a God merciful and gracious, slow to anger, and abounding in steadfast love and faithfulness.'"
Immutable: Malachi 3:6 - "For I the LORD do not change; therefore you, O children of Jacob, are not consumed."
सिखः धर्म
बाइबल को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है: पुराना नियम (Old Testament ) और नया नियम (New Testament)।
Old Testament में, ईश्वर को ब्रह्मांड के निर्माता, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ, अद्वितीय ,और अपरिवर्तनशील (सनातन)और दयावान रूप में चित्रित ,किया गया है। उसे एक न्यायपूर्ण और धर्मनिष्ठ स्वरूपी ईश्वर के रूप में दिखाया गया है।
Old Testament में ईश्वर की कुछ मुख्य गुण और विवरण शामिल हैं:
Yahweh (the LORD):Exodus 3:14 - "God said to Moses, 'I AM WHO I AM.' And he said, 'Say this to the people of Israel: 'I AM has sent me to you.''
Elohim: Genesis 1:1 - "In the beginning, God created the heavens and the earth."
Merciful and compassionate: Exodus 34:6 - "The LORD passed before him and proclaimed, 'The LORD, the LORD, a God merciful and gracious, slow to anger, and abounding in steadfast love and faithfulness.'"
Immutable: Malachi 3:6 - "For I the LORD do not change; therefore you, O children of Jacob, are not consumed."
*पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ 'शिष्य' होता है
गुरु ग्रन्थ साहिब के ये शब्द हम सबने सुने होंगे -
ੴ (एक ओमकार) सतनाम, करता पुरख,निरभउ निरवैर,
अकाल मूरत,अजूनी सैभं,
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
( पूर्ण परमात्मा एक है जो सम्पूर्ण सत्य है। वह समस्त जगत का सृजन करने वाला है, उसी से सम्पूर्ण जगत और ब्रह्माण्ड का सृजन हुआ है। वह किसी से द्वेष की भावना नहीं रखता है। वह अकाल मूर्त है, सनातन है। वह अजन्मा है, जन्म मृत्यु के बंधन से परे है। भाव है की वह अविनाशी और शाश्वत है। अजूनि से आशय है की वह कोई योनि धारण नहीं करता है। वह स्वंय में प्रकाशित है और उसे गुरु के प्रसाद, गुरु की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है। यह गुरु साहिब का मूल मन्त्र है।)आदि सच, जुगाद सच।ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ.हिंदी अर्थ : पूर्ण सत्य रूपी अकाल पुरुष, ईश्वर सनातन सत्य है, आदि काल से सत्य है। युगों युगों से वह पूर्ण सत्य है। उसका अस्तित्व श्रष्टि की रचना से भी पूर्व का है, सत्य है। भाव है की पूर्ण परमेश्वर समय से परे और सदा अस्तित्व रखने वाला है।है भी सच नानक होसी भी सच।ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ. वर्तमान में भी उसका अस्तित्व सत्य है। गुरु नानक देव जी का कथन है की आने वाले भविष्य में भी उसका अस्तित्व होगा जो सत्य है। भाव है की पूर्ण परमात्मा श्रष्टि की रचना से पूर्व भी अस्तित्व में था, वर्तमान में भी उसका ही अस्तित्व है और आने वाले समय में भी उसी का अस्तित्व रहेगा जो सत्य है।इक - एक ही।
ओम - समस्त ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण।
कार - निर्माता/कर्ता।
एक ओमकार- एक परम पूर्ण सत्य ब्रह्म, वाहेगुरु जी।
सतनाम- उसी का नाम सत्य है।
करता- करने वाला वही पूर्ण सत्य है जो समस्त जीवों की रक्षा करता है।
पुरखु- वह सब कुछ करने में पूर्ण है, सक्षम है (ईश्वर)
निरभउ- वह पूर्ण रूप से भय रहित है, निर्भय है। जैसे देव, दैत्य और जीव जन्म लेते हैं और मर जाते हैं, वह इनसे भी परे है, उसे काल का कोई भय नहीं है।
निरवैरु- वह बैर भाव से दूर है। वह किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है।
अकाल- वह काल से मुक्त है, वह ना तो जन्म लेता है और नाहीं मरता है। वह अविनाशी है।
मूरति- अविनाशी के रूप में वह सदा ही स्थापित रहता है।
अजूनी- वह अजन्मा है। वह पूर्ण है और जन्म और मृत्यु के फेर से, आवागमन से मुक्त है।
सैभं- वह स्वंय के ही प्रकाश से प्रकाशित है, वह स्वंय में ही रौशनी है।
गुरप्रसादि- गुरु के प्रसाद (कृपा) के फल स्वरुप सब संभव है क्योंकि गुरु ही जीवात्मा को अज्ञान से अँधेरे से ज्ञान के प्रकाश की तरफ मोड़ता है।
"कुछ धर्म कहते हैं कि केवल एक भगवान है। वेदांत कहता है कि एकमात्र भगवान ही है।" या यूँ कहें कि जो कुछ भी है सब ईश्वर ही है। आइये अब सनातन (हिन्दू) धर्म में ईश्वर की अवधारणा को वेदवाक्यों से समझते का प्रयास करते हैं।
रिग्वेद (1.164.46):"एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति" - इस वाक्य में कहा गया है कि एक सत्य (भगवान) है, लेकिन ज्ञानी उसे विभिन्न नामों से व्यक्त करते हैं।
एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म द्वितीयो नाsस्ति।।- (छान्दोग्य उपनिषद 6 / 2 / 1 }-ईश्वर केवल एक और अद्वितीय है।” सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म ” { तैतरेय 2 / 1 / 1 },-ब्रह्म सत्य और अनन्त ज्ञान-स्वरूप है ।
” सर्वँ खल्विदं ब्रह्म ” { छान्दोग्य 3 / 14 / 1 }, छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय 3 के चतुर्दश खंड के श्लोक क्रमांक २ में वर्णित सर्वं खल्विदं ब्रह्म का हिंदी अर्थ सब ब्रह्म ही है होता है।अर्थात इस संसार में जो कुछ हमें दिखाई देता है वो सब एक ही है, वह ब्रह्म है।
“न तस्य प्रतिमा अस्ति” - यजुर्वेद 32.3 - वह (ईश्वर ) स्वयं में अप्रतिम या अद्वितीय है।
अथर्ववेद (13.4.16):प्रत्यङ् जनांस्तिष्ठति संचुकोचान्तकाले ।संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपाः ॥
वह परमात्मा समस्त जीवोंके भीतर स्थित हो रहा है । सम्पूर्ण लोकों की रचना करके उनको रक्षा करनेवाला परमेश्वर , प्रलयकालमें इन सबको समेट लेता है ।
अथर्ववेद (10.8.28):"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते; पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।" - इस वाक्य में प्रकट होता है कि परमात्मा संपूर्ण और पूर्ण है, और संपूर्णता से एक और संपूर्णता उत्पन्न होती है।
*पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ 'शिष्य' होता है
गुरु ग्रन्थ साहिब के ये शब्द हम सबने सुने होंगे -
ੴ (एक ओमकार) सतनाम, करता पुरख,निरभउ निरवैर,
अकाल मूरत,अजूनी सैभं,
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
इक - एक ही।
ओम - समस्त ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण।
कार - निर्माता/कर्ता।
एक ओमकार- एक परम पूर्ण सत्य ब्रह्म, वाहेगुरु जी।
सतनाम- उसी का नाम सत्य है।
करता- करने वाला वही पूर्ण सत्य है जो समस्त जीवों की रक्षा करता है।
पुरखु- वह सब कुछ करने में पूर्ण है, सक्षम है (ईश्वर)
निरभउ- वह पूर्ण रूप से भय रहित है, निर्भय है। जैसे देव, दैत्य और जीव जन्म लेते हैं और मर जाते हैं, वह इनसे भी परे है, उसे काल का कोई भय नहीं है।
निरवैरु- वह बैर भाव से दूर है। वह किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है।
अकाल- वह काल से मुक्त है, वह ना तो जन्म लेता है और नाहीं मरता है। वह अविनाशी है।
मूरति- अविनाशी के रूप में वह सदा ही स्थापित रहता है।
अजूनी- वह अजन्मा है। वह पूर्ण है और जन्म और मृत्यु के फेर से, आवागमन से मुक्त है।
सैभं- वह स्वंय के ही प्रकाश से प्रकाशित है, वह स्वंय में ही रौशनी है।
गुरप्रसादि- गुरु के प्रसाद (कृपा) के फल स्वरुप सब संभव है क्योंकि गुरु ही जीवात्मा को अज्ञान से अँधेरे से ज्ञान के प्रकाश की तरफ मोड़ता है।
"कुछ धर्म कहते हैं कि केवल एक भगवान है। वेदांत कहता है कि एकमात्र भगवान ही है।" या यूँ कहें कि जो कुछ भी है सब ईश्वर ही है। आइये अब सनातन (हिन्दू) धर्म में ईश्वर की अवधारणा को वेदवाक्यों से समझते का प्रयास करते हैं।
रिग्वेद (1.164.46):"एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति" - इस वाक्य में कहा गया है कि एक सत्य (भगवान) है, लेकिन ज्ञानी उसे विभिन्न नामों से व्यक्त करते हैं।
एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म द्वितीयो नाsस्ति।।- (छान्दोग्य उपनिषद 6 / 2 / 1 }-ईश्वर केवल एक और अद्वितीय है।” सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म ” { तैतरेय 2 / 1 / 1 },-ब्रह्म सत्य और अनन्त ज्ञान-स्वरूप है ।
” सर्वँ खल्विदं ब्रह्म ” { छान्दोग्य 3 / 14 / 1 }, छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय 3 के चतुर्दश खंड के श्लोक क्रमांक २ में वर्णित सर्वं खल्विदं ब्रह्म का हिंदी अर्थ सब ब्रह्म ही है होता है।अर्थात इस संसार में जो कुछ हमें दिखाई देता है वो सब एक ही है, वह ब्रह्म है।
“न तस्य प्रतिमा अस्ति” - यजुर्वेद 32.3 - वह (ईश्वर ) स्वयं में अप्रतिम या अद्वितीय है।
अथर्ववेद (13.4.16):प्रत्यङ् जनांस्तिष्ठति संचुकोचान्तकाले ।संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपाः ॥
वह परमात्मा समस्त जीवोंके भीतर स्थित हो रहा है । सम्पूर्ण लोकों की रचना करके उनको रक्षा करनेवाला परमेश्वर , प्रलयकालमें इन सबको समेट लेता है ।
अथर्ववेद (10.8.28):"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते; पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।" - इस वाक्य में प्रकट होता है कि परमात्मा संपूर्ण और पूर्ण है, और संपूर्णता से एक और संपूर्णता उत्पन्न होती है।
ऋग्वेद कहता है कि ईश्वर एक है किन्तु दृष्टिभेद से मनीषियों ने उसे भिन्न-भिन्न नाम दे रखा है । जैसे एक ही व्यक्ति परिवार के अलग-अलग लोगों द्वारा पिता, भाई, चाचा, मामा, फूफा, दादा, भतीजा, पुत्र, भांजा, पोता, नाती आदि नामों से संबोधित होता है, वैसे ही ईश्वर भी भिन्न-भिन्न कर्ताभाव के कारण अनेक नाम वाला हो जाता है । यथा-
जिस रूप में वह सृष्टिकर्ता है वह ब्रह्मा कहलाता है । जिस रूप में वह विद्या का सागर है उसका नाम सरस्वती है । जिस रूप में वह सर्वत्र व्याप्त है या जगत को धारण करने वाला है उसका नाम विष्णु है । जिस रूप में वह समस्त धन-सम्पत्ति और वैभव का स्वामी है उसका नाम लक्ष्मी है । जिस रूप में वह संहारकर्ता है उसका नाम रुद्र है । जिस रूप में वह कल्याण करने वाला है उसका नाम शिव है । जिस रूप में वह समस्त शक्ति का स्वामी है उसका नाम पार्वती है, दुर्गा है । जिस रूप मे वह सबका काल है उसका नाम काली है । जिस रूप मे वह सामूहिक बुद्धि का परिचायक है उसका नाम गणेश है । जिस रूप में वह पराक्रम का भण्डार है उसका नाम स्कंद है । जिस रूप में वह आनन्ददाता है, मनोहारी है उसका नाम राम है । जिस रूप में वह धरती को शस्य से भरपूर करने वाला है उसका नाम सीता है । जिस रूप में वह सबको आकृष्ट करने वाला है, अभिभूत करने वाला है उसका नाम कृष्ण है । लोग अपनी रुचि के अनुसार ईश्वर के किसी नाम की पूजा करते हैं ।
एक विद्यार्थी सरस्वती का पुजारी बन जाता है, सेठ-साहूकार को लक्ष्मी प्यारी लगती है । शक्ति के उपासक की दुर्गा में आस्था बनती है । शैव को शिव और वैष्णव को विष्णु नाम प्यारा लगता है । वैसे सभी नामों को हिन्दू श्रद्धा की दृष्टि से स्मरण करता है ।
- अर्थात ईश्वर का एक होने से यह तथ्य मान लेने से भी, कि परब्रह्म ‘एकमेवाद्वितीयं’ है,
यह सिद्ध नहीं होता कि उसके प्राप्त होने का उपाय एक से अधिक न रहे। एक ही शहर जाने के लिये जिस प्रकार दो मार्ग या अनेक मार्ग भी हो सकते हैं;ब्रह्मांड और उसके सृजन की प्रकृति को समझाने के लिए, केवल धार्मिक सिद्धांतों में पूर्ण विश्वास अपर्याप्त है। मनुष्य के लिए एक स्पष्ट और विवेचनशील मन होना एक अपरिहार्य गुण है। निश्चित तौर पर एक सीमा तक विश्वास की जरूरत होती है, लेकिन यह अंधविश्वास नहीं होना चाहिए। यह अनंतिम , सामयिक या अस्थायी (provisional) विश्वास होना चाहिए , जो आपकी खुद की जांच के परिणामों की प्रतीक्षा में होता है।
ऊपर हमने लगभग सभी मुख्य धर्मों के धर्म ग्रंथों के माध्यम से ईश्वर की अवधारणाओं को समझने का प्रयास किया और मैं जो ससमझ पाया उसे भक्त कबीर दास जी के शब्दों का अवलम्ब लेकर कहूँ तो।
ना मैं मंदिर में ना मैं मस्जिद में, ना काबा-कैलाश में
हिंदू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।।
वेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहीं।
चारों वेद और चारों कतेब यानी कि कुरान शरीफ-जबूर-इंजील-तौरेत गलत नहीं हैं। परंतु जो उनको समझ नहीं सके वे नादान हैं।
राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय ।कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय ॥
कबीर कहते हैं राम और रहीम दो अलग-अलग सत्ता नहीं है, बल्कि एक ही हैं। दो नाम सुनकर हमें भ्रम में नहीं होना चाहिए हमारे और उनके भगवान अलग-अलग हैं।
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