प्रसन्नता (हँसी, खुशी, हर्ष और आनंद)
प्रसन्नता एक अनवरत खोज है।
हंसी, ख़ुशी, हर्ष से होते हुए,
आनंद की अवस्था तक आने की
एक सार्थक जीवन यात्रा ।
हंसी इसकी आहट है,
खुशी इसकी दस्तक
हर्ष इसका आगमन और
आनंद इसका धाम।
हंसी की क्षणिका में अनायास सहजता है,
खुशी की कविता में उपलब्धि का संतोष।
हर्ष की कहानी में उत्साह और उमंग है,
तो आनंद के उपन्यास में नीरव संतुष्टि ।
प्रसन्नता क्या है ?
हँसी, खुशी,हर्ष और आनंद का
एक सरस , समृद्ध और शाश्वत संवाद।
अक्षरा तृष्णाओं का शमन नहीं
वरन इनका सचेष्ट निर्झर वमन है।
जीवन के प्रवाह का ठहराव नहीं,
वरण स्थिरता में अविरल जीवन धारा है।
यह गंतव्य नहीं वरन एक यात्रा है।
यह दृश्य नहीं , कदाचित एक दर्शन है।
शब्दों को जानने , जीने में थोड़ अंतर रह जाता है शायद जैसे सुख, ख़ुशी और आनंद। ख़ुशी छणिक है , सुख थोड़ा अल्पकालिक लिन्तु आनंद चिरस्थायी और सनातन है। ख़ुशी और सुख का एक केंद्र या अवलंब होता है मोह का विषयों के भोग या प्राप्ति का , किन्तु आनंद विषयों या भोग के मोह या प्राप्ति से परे एक उपलब्धि है। बुद्ध की तरह सोचें तो यह भी का सकते हैं की जहाँ से सुख आया है या ख़ुशी मिली है वही से दुःख भी मिलेगा किन्तु जहाँ से आनंद की अनुभूति हुई है वहां से अवसाद का प्रश्न भी नहीं है , यह तो एक सर्वतः उन्मुक्त सिद्धि है।
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