Posts

Showing posts from 2025

तुम अच्छी , मैं ठीक- ठाक ।

Image
मैं किसी से, या कोई मुझसे, पूछता है— "और कैसे हो?" तो एक सहज उद्गार होता है— "ठीक हूँ।" क्योंकि "कैसे हो?" प्रश्न नहीं, एक औपचारिक अभिवादन-सा होता है, सो "ठीक हूँ" भी सिर्फ़ एक सहज, अभिव्यक्ति भर होती है, बिल्कुल सटीक, उत्तर न होकर। अब हम सभी, निर्द्वंद्व,  स्वीकार भी लेते हैं इसे, एक जवाब के मानिंद। जब तुम पूछती हो— "कैसी लग रही हूँ?" और मैं कहता हूँ— "तुम अच्छी लगती हो।" और तुम्हें लगता है, यह भी कोई गढ़ी-बनाई सी बात है। पर मैं कैसे बताऊँ कि— इस पतझड़ के ठूँठे पेड़ पर , खिला, पहला फूल हो तुम। और पुष्प  पूर्ण होते हैं, स्वयं में, भला पुष्प को भी श्रृंगार की, आवश्यकता होती है.. क्या ? तुम मुझे अच्छी लगती हो, जैसी की तैसी, पूर्ण प्रेम-सी। यह सटीक उत्तर होता है— जैसा मैं देख पाता हूँ, बिल्कुल वैसा। किसी औपचारिक अभिवादन की प्रतिअभिव्यक्ति मात्र, तो बिल्कुल भी नहीं। खैर छोड़ो, कुछ बातें, कुछ अहसास, और इत्र— भीने होते हैं, अनुभूतियों में स्थित, पर शब्दों से परे। कुछ कस्तूरी सा है भीतर,  कहीं दिखता भी नहीं,  कमबख्त ! ...

विस्मृत समर्पण

हम पत्थर पर, सजदे में या प्रार्थना में नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं और तृष्णाओं पर सिर पटकते हैं। जाने-अनजाने, हम ईश्वर को भी मात्र एक साधन बना लेते हैं— दुख में, जरूरत में, अभिलाषाओं की पूर्ति में। परंतु उपयोगवादिता के दृष्टिकोण से भी, यह तो उतना ही तुच्छ उपयोग हुआ, जितना कि तलवार से चींटी का शिकार। जिसे आत्मबोध, संतोष और अनंत सृजन का स्रोत होना था, उसकी विराट अनुभूति से हम अपने विवेक की परिसीमाओं तक ही अनुभूत हो पाते हैं। यह विचार तत्वगत है— तथ्यगत नहीं। We do not surrender to a stone, in prostration, or in prayer, but upon our own desires and cravings. Knowingly or unknowingly, we reduce even God to a mere instrument— in sorrow, in need, in the fulfillment of aspirations. Yet, even from a utilitarian perspective, this is as trivial a use as hunting an ant with a sword. That which was meant to be the source of self-realization, contentment, and infinite creation, we experience only within the narrow confines of our intellect. This thought is metaphysical, not factual.

Cosmic Whispers and the Candles of Hope

Image
Surprised by the influence of thoughts as a form of energy across time and space. Yesterday, a senior officer at a distant location stood at the edge of ending his life, while I felt an inexplicable urge to immerse myself in Albert Camus' existentialism. Was it mere coincidence, or the ripple effect of intense thoughts resonating somewhere in the cosmos? Camus wrote, 'Man is the only creature who refuses to be what he is.' In the depth of winter, we often forget the invincible summer within us. Some expend immense energy just to appear normal, yet in the end, it takes far more courage to live than to surrender to despair. If only we could remind each other, in moments of darkness, that the invincible summer within us still exists—waiting to be rediscovered. With a connection to the cosmos and an awareness of the darkest corners of the human mind, may the universe grant us the strength to kindle the candles of hope and confidence through our thoughts, words, and ...

साक्षात्कार

Image
मेरी लेखनी में, ईश्वर नहीं दिखता, मगर होता है, शब्दों में पिरोया, अनासक्ति में भिगोया। इसमें मिल सकता है, जीवन सरिता का विस्तार,  कर्म की नौका पर सवार, जीवन के तिलिस्म की, भव्यता का स्वीकार  और, एक गूढतम अंगीकार। उसकी प्रथम अनुभूति का, अनुपम साक्षात्कार। मूर्तियां नहीं है मगर, जीव और जीवन में जीवंत, वह मिलेगा अध्योपांत। दिख सकता है, परंपरा से विद्रोह, एक उन्मुक्त अंतर्बोध, बंधनों से विरोध , और सहज,निर्मल, उत्कंठ अभिलाषा, एक, निर्बंध अनुभूति की .......

पथिक -Seeking Experiences, Contemplating Existence, & Embracing The Path of a Wanderer.

Image
हम में, तुम में, सब में, थोड़ा-बहुत हूँ, जीवन से मृत्यु के बंधनों के बीच, कायांतरण की इस अनवरत यात्रा में, निर्बंध मुमुक्षा का यात्री हूँ। अनिश्चितताओं के बीहड़ में, उम्मीदों की मशालें लिए, आशंकाओं और उम्मीदों के मध्य, संभावनाओं की पगडंडियों पर, दो-चार कदम चलता हुआ, एक पथिक हूँ। यह चलना हमेशा आगे बढ़ना नहीं होता। आगे जाने में एक दिशा होती है। इस बीहड़ में, हर कदम पर असंख्य दिशाएँ फूटती हैं, जैसे मन के आँगन में अनंत इच्छाएँ, कामनाएँ, आकांक्षाएँ, आशंकाएँ, और संभावनाएँ प्रस्फुटित होती हैं। मन की ये अंतहीन स्थितियाँ अनगिनत राहों का होना ही है, और अनगिनत राहों का होना दो पैरों और एक सिर के लिए दिशा न होने जैसा ही है— बेबस और बेचैन करने वाली, एक किंकर्तव्यविमूढ़ता लिए। तब इस पथिक का विवेक, अनिश्चितताओं के इस बीहड़ में, उम्मीदों की मशालें लिए, आशंकाओं और उम्मीदों के मध्य संभावनाओं के रथ का सारथी बनता है। सही-गलत का चुनाव करता है; मगर यह सही-गलत सार्वभौमिक या निरपेक्ष नहीं, वरन् पूर्णतः सापेक्ष होता है। यह चयन होता है— व्यक्तिगत; परिस्थितियों, अनुभवों, आकांक्षाओं, आत्मविश्वास, नैति...

अंतर्द्वंद्व

Image
केवल लिखने के लिए , लिखना चाहता हूँ। और बस जीवन के लिए, जीना चाहता हूं। कहानियां नहीं हैं मेरे पास, किन्तु कुछ सार्वभौम, रचना चाहता हूँ। कोई निश्चित गंतव्य नहीं है, मगर सब तक पहुंचना चाहता हूँ। अपने व्यक्ति को उसकी सम्भाव्य, समष्टि से मिलाना चाहता हूँ। दीपक या दिनकर नहीं हूँ,  लेकिन हैं, कुछ तीलियां मेरे पास। अपने अंधेरे को पार कर , सबके मन के दीयों की ओर, एक लौ बढ़ाना चाहता हूँ। कोई निश्चित सवाल नहीं है , बस कुछ लाजवाब ,लिखना चाहता हूँ। कोई मिसाल नहीं हूँ, बस कुछ बेमिसाल, लिखना चाहता हूँ। वसुधा के गर्भ से जैसे, अंगारों को हिम का आवरण तोड़, ज्वालामुखी बन,निकलना पड़ता है। अंतस में विचारों की ज्वाला सी है, न लिखूं ,तो बेचैनी सी होती है, और लिखूं तो विद्रोह होता है। उगाने में कागज़ पर, एक फूल गुलाब सा, कांटे भी उग आते हैं, सहज ही। संभव है, सब तक न पहुंचे, मेरे मन की सीपियों से, अंतर्द्वंद्व के ये मोती, मगर निरन्तर गढ़ रहा हूँ, मैं, कुछ टेढ़े - चिपटे मोती, की जब कोई ढूंढता आए , मेरे अंतर्द्वंद्वों में गढ़े मोतियों सा कुछ, तो कुछ मिल जाए उसे उसके मतलब का। जीवन सागर में, ...

नारी

ये झुकती नजर, ये लहराती जुल्फें, ये हया की फितरत, ये शर्माना तुम्हारा, सब ठीक, मगर तुम जरा, इठलाना भी,  इतराना भी, जमीं से जुड़ी रहना, मगर ख्वाबों के पंखों  को बचाए रखना,  उड़ना, और जाना वहां तक, जहां तक जाना चाहती हो, तुम। सब के लिए, सब कुछ करते हुए, खुद के लिए भी, कुछ - कुछ करती रहना। मत भूलना कि तुम भी तुम्हारी जिम्मेदारी हो, तुम्हें भी तुम्हारी, उतनी ही, या, उन सबसे ज्यादा जरूरत है। तुम सृजन की जननी हो, तुम ही परिवर्तन की , अक्षरा प्रेरणा हो। अपने सपनों के,  गगनचुंबी प्रसादों को गढ़ती जाना। उन्हें हौसलों की उड़ान देना। जब लगे कि रिवाजों - दस्तूरों, और जिम्मेदारियों की बेड़ियां , तुम्हें कस चुकीं हैं, दौड़ना मुमकिन ना हो, तब चलना,  हिलने की कोशिश करना, मगर,रुकना मत , जब कुछ भी , सरल ना हो,तब भी,  तुम सहज रहना,  मत भूलना,तुम कौन हो? तुम सृजन की जननी हो, तुम ही परिवर्तन की प्रेरणा हो, तुम धैर्य धारणी, वसुंधरा हो, तुम आरंभ हो , तुम विस्तार भी, तुम संकल्प हो,  तुम सृजन की धार भी, तुम सनातन प्रवाहशील , जीवन सलिला हो, तुम नारी हो।