जीवन जैसा कुछ
अपने लिखने में...... , जीवन लिखना चाहता हूं। कभी पूरा जीवन नहीं लिख पाता, हां लिखने की इस कोशिश में , जीवन जैसा बहुत कुछ लिखता हूं। जीवन जीना चाहता हूं , और जीने की चाहत में , जीवन जैसा बहुत कुछ जी लेता हूं, कभी पूरा जीवन रूप नहीं घटता, एक अपूर्णता बनी रहती है शाश्वत सी। संतुलित करना चाहता हूँ सब कुछ, मगर, एक बात ठीक करूं, तो कई बातें बिगड़ जाती हैं। संतुलन की इस कोशिश में, संतुलन जैसा कुछ हो जाता है, एक अपूर्णता सी रहती है, और यह भी कुछ-कुछ जीवन सा लिख गया शायद।।