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प्रसन्नता (हँसी, खुशी, हर्ष और आनंद)

प्रसन्नता  प्रसन्नता एक अनवरत खोज है। हंसी, ख़ुशी, हर्ष से होते हुए, आनंद की अवस्था तक आने की एक सार्थक जीवन यात्रा । हंसी इसकी आहट है, खुशी इसकी दस्तक  हर्ष इसका आगमन और आनंद इसका धाम। हंसी की क्षणिका में अनायास सहजता है, खुशी की कविता में उपलब्धि का संतोष। हर्ष की कहानी में  उत्साह और उमंग है, तो आनंद के उपन्यास में नीरव संतुष्टि । प्रसन्नता क्या है ? हँसी, खुशी,हर्ष और आनंद का एक सरस , समृद्ध और शाश्वत संवाद। अक्षरा तृष्णाओं का शमन नहीं  वरन इनका सचेष्ट निर्झर वमन है। जीवन के प्रवाह का ठहराव नहीं, वरण स्थिरता में अविरल जीवन धारा है। यह गंतव्य नहीं वरन एक यात्रा है। यह दृश्य नहीं , कदाचित एक दर्शन है।

"किसी की ज़मीन, किसी का आकाश"

चांद-तारों की ज़मीन, आकाश होता है। और पेड़ों का आसमान, ज़मीन होती है। गौर करें तो पेड़ उगते हैं, ज़मीन से,  और चांद के उगने को आसमान होता है। कोई ताकता है ज़मीन से, आसमान को, तो कोई झांकता है आसमान से ज़मीन को। धरती समेटे है जीवन की संभावनाएं , तो आकाश जीवन का विस्तार लिए बैठा है। देखिए कई बार ,गौर से हर शख्स को, जाने कौन क्या कुछ, भरे बैठा है ? कहीं किसी की खामोशी में, छिपा शोर है, तो किसी की हँसी में, कोई दर्द बैठा है। हर वजूद में भरी है , कई कहानियां, सुन सके वो, जो सुनने को तैयार बैठा है।

ईश्वर के मन का - "एक आत्मीय संवाद ईश्वर से"

ईश्वर को याद सभी करते हैं, कोई चाहता नहीं कि ईश्वर भी कभी उसे याद कर ले। भगवान से प्यार सभी करते हैं, कोई चाहता नहीं भगवान का प्यारा होना। सभी मांगते हैं ईश्वर से अपने मन का, अर्पण भी करते हैं कुछ अपने ही मन का। कोई मांगता नहीं ईश्वर से खुद के लिए ईश्वर के मन का। कोई भगवान से कभी नहीं पूछता, कि उसको भी कुछ चाहिए क्या? कुछ तो चाहता ही होगा ईश्वर हमसे, उस सर्वसमर्थ का कोई प्रयोजन तो होगा। हम ईश्वर की ही तो रचना हैं, ईश्वर का उद्देश्यहीन कृत्य या एक ईश्वरीय दुर्घटना मात्र तो नहीं हो सकते। यूं तो जानते हैं,हम ईश्वरीय रचनाएं होते हैं। दुर्घटनाएं, ईश्वरीय कृत्य नहीं हो सकतीं।

दिवास्वप्न : एक जीवन संवाद !

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और गजानंद माधव मुक्तबोध ,  हिंदी साहित्य   में आधुनिक कविता के अग्रदूत माने जाते हैं। आज मुझे मुक्तिबोध जी की एक पंक्ति याद आ रही है वो लिखते हैं।  " जो आदमी आत्मा की आवाज कभी कभार सुन लिया करता है और उसे लिख कर छुट्टी पा लेता है लेखक हो जाता है। “   मुक्तिबोध जी के लेखक परिचय को मानूँ तो , मेरा परिचय बस इतना है कि , मैं अभय कुमार ,      हिंदी साहित्य का एक साधारण रचनाकार हूँ , और निरंतर अपनी रचनाओं के माध्यम से , प्रासंगिक बने रहने की कोशिश कर रहा हूँ। इसी श्रृंखला में उत्तराखंड से ही हिंदी भाषा के सिद्ध हस्त लेखक शैलेश मटियानी जी लिखते हैं कि लेखक की शोभा इसी में है कि वह विचार किए जाने की स्थितियां संभव करे और उनपर विचार किया जाए। आज की मेरी कविता का नायक हम सभी के भीतर बसे एक कर्मयोगी और प्रकृति प्रेमी का प्रतिबिंब है।   वह यह विश्वास रखता है कि हमारा जीवन केवल खुद तक सीमित और पूरी तरह व्यक्तिगत मायनों में शायद ही कोई विशेष अर्थ रखता हो।   इसके विपरीत , हमारा जीवन तब सार्थक होता है जब हम अपने अस्तित्...

performance management system for large scale manufacturing enterprises

  The Performance Management System (PMS) should be focused on measurable, impact-driven objectives. This system should   balance core Key Result Areas (KRAs) with leadership evaluations to ensure both organisational growth and individual leadership effectiveness. Initial planning must include current year targets as well as long term strategic organisational goals and should be initiated at least 3 month prior to submission,favourably in fourth quarter of financial year. 1. Core KRA Focus - 30% Weightage The PMS should allocate 30% of its weightage to two core KRAs essential for sustainable growth: A. Cost Reduction Projects: Implement projects that reduce operational costs. B. Quality Improvement: Initiatives aimed at improving the quality of products or services. C. Productivity Improvement: Enhancing productivity to maximise output. Additionally: 2. New Product Development: 10% Weightage This objective ensures long-term growth and sustainability by focusing...

"Leadership Through Service: Redefining Power and Authority"

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Upon reflection, it becomes clear that we hold no true power over others, and even our control over ourselves is often limited. While others may view us as influential, this influence arises not from any assumed delegated authority or power, but from the dutiful execution of the responsibilities entrusted to us in our roles. In leadership pespective, we are all servants—servants to our teams, organisations, families, and society—each fulfilling distinct roles. By "servant," I mean one who meets the needs of others out of duty, not a slave who simply fulfils desires. A servant acts with purpose and responsibility, while a slave is driven by the will of others. The more control we exercise over ourselves, the greater the influence we are likely to draw, for leadership begins with self-leadership. By embodying personal integrity, resilience, and empathy, we lay the foundation for true influence.  Yet it is important to recognise that responsibility, when delegated, i...

The Power of Ordinary Individuals: Innovation, Passion, and Collective Progress

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It is truly humbling to consider ourselves as ordinary, yet it can be disheartening to believe that an ordinary individual cannot make a difference in the world. In reality, those who create meaningful change are ordinary people, doing a few things extraordinarily well through hard work and smart effort, honed over time.  Our vulnerability actually is the birthplace of innovation, creativity, and progress. What shapes us is not necessarily reality itself, but the lens through which we view the world. By changing that lens, we can not only transform our own happiness but also positively influence individual and organisational outcomes. The vision of a perfect world cannot be crafted by one person, nor by a million experts. It requires the hands of all 7 billion individuals, each following their own passions.  With humility, I share the belief that there is no direct correlation between being the most articulate or the best writer and having the best ideas.  The...